दिल्ली की स्वास्थ्य व्यवस्था पर लगातार गंभीर सवाल खड़े हो रहे हैं. मरीजों के परिजनों अस्पतालों में सुविधाओं की कमी का आरोप लगा रहे हैं.

नई दिल्लीः दिल्ली में कोरोना संक्रमण के मामले लगातार बढ़ते जा रहे हैं. पिछले 10 दिनों के दौरान ही 50 प्रतिशत से ज्यादा मामले सामने आ चुके हैं. फिलहाल 31 हजार से ज्यादा मरीज दिल्ली में कोरोना से संक्रमित हैं और जिस तरह से मामले बढ़ रहे हैं वह चिंताजनक स्थिति है क्योंकि हर गुजरते दिन के साथ मामले तेजी से बढ़ रहे हैं. ऐसे में अब सरकारों और अस्पतालों के रवैए के ऊपर सवाल खड़े होने लगे हैं. क्योंकि जिम्मेदारी सब की थी और जिस तरह के हालात हैं वो यही दिखा रहे हैं कि जो कदम उठाए जाने चाहिए थे वह नहीं उठाए गए.
आशुतोष के पिता अब इस दुनिया में नहीं है क्योंकि कोरोना संक्रमण की वजह से उनकी मौत हो गई है. लेकिन आशुतोष का मानना है कि अगर उनको सही इलाज मिल जाता और देखभाल हो जाती है तो उनकी जान बचाई भी जा सकती थी. क्योंकि आशुतोष के पिता डायबिटीज से तो ज़रूर पीड़ित थे लेकिन कोई और गंभीर बीमारी नहीं थी.
आशुतोष की मानें तो उन्होंने अपने पिता के इलाज के लिए दिल्ली के अलग-अलग अस्पतालों में चक्कर लगाए. 1 तारीख को जैसे-तैसे निजी अस्पताल से कोरोना वायरस का टेस्ट तो करवा लिया लेकिन जब दाखिले की बारी आई तो कई अस्पतालों के चक्कर लगाने के बाद भी दाखिला नहीं मिला. यहां तक कि दिल्ली सरकार ने जिस ऐप का जिक्र किया था उस ऐप पर देख कर भी अस्पतालों तक पहुंचे लेकिन वहां पर भी भर्ती करने से साफ मना कर दिया गया यह कहते हुए कि बेड नहीं है. जबकि ऐप पर साफ तौर पर दिखा रहा था कि अस्पताल में बेड खाली हैं.
आशुतोष के चाचा विनोद शर्मा के मुताबिक वह अपने भाई को लेकर अलग-अलग अस्पतालों के चक्कर लगाने के बाद अपने भाई को लेकर एलएनजेपी अस्पताल पहुंचे लेकिन खुद उनके भाई भी वहां दिए गए इलाज से संतुष्ट नहीं थे. आशुतोष के चाचा के मुताबिक, अस्पताल में भर्ती उनके भाई ने भी इनसे कहा था कि अगर मुमकिन है तो किसी और अस्पताल में ले चलो क्योंकि यहां न तो सही इलाज मिल रहा है और न ही कोई देखभाल हो रही है. लेकिन प्राइवेट अस्पताल में भर्ती करवाने के लिए पैसे नहीं थे लिहाजा वहां ले जाने की सोच भी नहीं सकते थे.
आशुतोष और उनके चाचा की मानें तो सरकारी अस्पताल में हालत यह है कि 3 तारीख को जब आशुतोष ने अपने पिता को एलएनजेपी अस्पताल में भर्ती करवाया था उसके बाद से लेकर उनकी मौत की खबर आने तक अस्पताल की तरफ से ना तो मिलने दिया गया और ना ही कोई जानकारी दी गई. बीच में आशुतोष ने किसी की मदद से अपने पिता तक फोन पहुंचवा दिया था जिससे उनका कभी-कभी हाल चाल पता चल जाता था. आशुतोष के मुताबिक इस बीच जगह-जगह चक्कर काटने के बावजूद अस्पताल की तरफ से कोई आधिकारिक जानकारी नहीं मिल पा रही थी लेकिन अस्पताल से जब जानकारी आई तो वह जानकारी उनकी मौत की थी.
आशुतोष और उनके चाचा विनोद की तरफ से सरकारी अस्पतालों की बदइंतजामी को लेकर जो सवाल उठाए जा रहे हैं वह निश्चित तौर पर गंभीर हैं. हालांकि इस बात से इनकार नहीं किया जा सकता कि कोरोना संक्रमण काल में सरकारी अस्पतालों के ऊपर पहले की तुलना में कहीं ज्यादा गुना दबाव आ गया है और दिन रात मरीजों का इलाज चल रहा है. लेकिन जिस तरह से मरीज बदइंतज़ामी की बात कर रहे हैं वह निश्चित तौर पर इस वजह से भी चिंता का विषय है क्योंकि इसकी वजह से ही मरीज सरकारी अस्पतालों में आने से बच रहे हैं.
स्वास्थ्य क्षेत्र में काम करने वाले लोगों की माने तो आज की तारीख में दिल्ली में हालात यह हैं कि लाखों के बिलों के चलते लोग निजी अस्पतालों में जाना नहीं चाहते और सरकारी अस्पतालों में बदइंतजामी की तस्वीरों और हालातों के चलते वहां जाते भी हैं तो इलाज करवाना नहीं चाहते.
यह हालत तब है जब देश की राजधानी दिल्ली में मामले लगातार बढ़ते जा रहे हैं. दिल्ली में पूरे देश की तुलना में केस कम दिनों में दोगुने हो रहे हैं जबकि सही होने वाले मरीजों की संख्या भी देश की तुलना में काफी कम है. ऐसे में अगर हालात जल्द सुधारे नहीं गए तो निश्चित तौर पर जिस बात की चेतावनी आशुतोष दे रहा है दिल्ली के लोगों को उसका खामियाजा उठाना पड़ जाएगा.
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